Anmol24news-पटना 6दिसंबर, संस्कृति और साहित्य का उत्सव पटना पुस्तक मेला गांधी मैदान में प्रारंभ हो गया है। आज इस मेले का शुभारंभ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने किया। श्री कृष्णापुरी मुहल्ले के नाम पर बने मंच के समीप पीपल के छोटे पेड़़ को मुख्यमंत्री ने पानी देकर पुस्तक मेला का शुभारंभ किया। मालूम हो कि इस साल मेले का थीम पेड़ पानी जिंदगी- पर्यावरण सुरक्षा अभी रखा गया है।
पटना पुस्तक मेला के संयोजक अमित झा ने प्रतीक चिन्ह देकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा को प्रतीक चिन्ह देकर का स्वागत किया। मुख्यमंत्री ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ,श्रम संसाधन विभाग,वाणी प्रकाशन,बिहारी राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण,आर्ट गैलरी का भ्रमण भी किया। रत्नेश्वर ने इस मौके पर बताया कि 1985 में प्रारंभ इस मेले से मुख्यमंत्री का रिश्ता रहा है। उद्घाटन के प्रथम सत्र में मुख्यमंत्री सहित सभी आगत अतिथियों को दो दो पुस्तकें भेंट की। इस मौके पर पटना पुस्तक मेला के संस्थापक एन के झा,
रत्नेश्वर, संयोजक अमित झा , अमरेन्द्र झा, जयप्रकाश, मोनी त्रिपाठी भी उपस्थित थे।
पटना पुस्तक मेला के दुसरे सत्र में श्री कृष्णापुरी मंच पर लोकगायिका शारदा सिन्हा, लेखिका साहित्यकार उषा किरण खान की स्मृतियों से पाठकों को परिचित कराया गया।
संगीतज्ञ अंशुमान सिन्हा ने शारदा सिन्हा के साथ बचपन से रियाज ,उनकी गायकी की विविधता और विस्तार पर जीवन की कहानी कही। अंशुमान ने कहा कि शारदा सिन्हा की जीवंतता,व्यक्तित्व और संगीत बिहार के लिए बड़ी धरोहर है। स्मृतियां साझा करते हुए उन्होंने लोकगायिका पर शोध की आवश्यकता पर बल दिया। लोकगायिकी की अपनी शैली से उन्होंने स्थानीय मंच के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी एक साथ पंचामृत अंगिका, बज्जिका,मगही,भोजपुरी और मैथिली में गाया। नृत्य से उन्होंने नाटकीयता सीखी। सुरों की सुंदरता से लोकगायिकी को सजाया। मिमिक्री और कैरिकेचर भी उन्हें खूब भाता था। गायिकी ही नहीं, साहित्य के लिए भी बहुत काम किया है। स्व् ब्रजकिशोर दूबे की रचनाएं उनकी गायकी रही। लोकगायिका पर शोध बिहार और उत्तर भारतीयों को लोकशक्ति का बोध देगा।
उषा किरण खान को याद करते हुए उनके पुत्र तुहिन शंकर ने बताया कि इसी मंच पर दो साल पहले उनके साथ ही आया। पटना पुस्तक मेला में उनकी माता उषा किरण खान और पिता आईपीएस रामचन्द्र खान हाथ पकड़ कर यहां लाते थे। आयाम से जुड़ी मित्राणी थीं, चूंकि उनके बीच फासला उम्र का होते हुए भी स्वभाव, समझ और सम्मान एक समान था। उषा किरण खान का बचपन गांव, दरभंगा और पटना में गुजरा। इंटर में शादी हो गयी। रामचन्द्र खान जहां बिहार के टापर थे वहीं उषा किरण का रैंक 10 या ग्यारह था। मां को गांव से पटना लाने में उस समय बहुत मशक्कत करनी पड़ी। 1965 में पिता आईपीएस हुए ,फिर मां को विभिन्न जिलों में रहने का मौका मिला।नागार्जुन और गांव शहर की विविधता से कहानी, लेख वो रोज लिखती थीं। उन्हें डायरी सुबह 5 बजे लिखने की आदत थी। 70 के दशक में पहली कहानी धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपी तो गांव और शहर के लोगों के बीच उनकी पहचान बढ़ी। जीवन के अनुभव और आसपास की चीजें मैथिली और हिन्दी साहित्य के लिए उन्हें उर्जा प्रदान करती रही। पुरस्कार से कभी मतलब नहीं रहा पर किसी मंच पर वक्ता के रुप में सुनकर उनकी साहित्यिक रुचि की समृद्धि का भान श्रोताओं को जल्दी हो जाता था।